Patanjali Case Supreme Court: बाबा रामदेव पर सक्त हुआ SC ,कोर्ट ने लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पतंजलि के विज्ञापनों के मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि इस मामले में कंपनी के साथ-साथ विज्ञापन करने वाले सेलिब्रिटी और सोशल मीडिया प्रभावित करने वाले सभी समान रूप से भ्रामक विज्ञापन के लिए जिम्मेदार हैं। अदालत ने अपनी सुनवाई के दौरान जारी बयान में केंद्र सरकार के उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) द्वारा 2022 में जारी किए गए भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित सरकारी दिशानिर्देशों का भी उल्लेख किया है।

भ्रामक विज्ञापनों को रोकने के लिए दिशानिर्देश

सीसीपीए द्वारा 2022 में जारी किए गए दिशानिर्देशों में विज्ञापनों को व्यापक रूप से नियंत्रित करने के लिए कई महत्वपूर्ण नियम शामिल हैं। इन नियमों का पालन करने के लिए विज्ञापन बनाने वालों और उनके साथियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इन नियमों में विज्ञापन की सटीकता, सत्यापन, और सटीकता के मापदंड शामिल हैं, ताकि भ्रामक या गलतफहमी से बचा जा सके। साथ ही, विज्ञापन में शामिल व्यक्तियों और सेलिब्रिटी को भी नियमों का पालन करने का दायित्व सौंपा गया है, ताकि उनके माध्यम से प्रस्तुत जानकारी विश्वसनीय और सत्यापनीय हो। इसके अलावा, विज्ञापन में शामिल उत्पादों और सेवाओं के बारे में सटीक जानकारी देने की भी मांग की गई है। यह नियम उपभोक्ताओं को समाजिक और आर्थिक हानि से बचाने के लिए हैं और उन्हें सुरक्षित और सुरक्षित विज्ञापनों का लाभ उठाने का सुनिश्चित करने का उद्देश्य रखते हैं।

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कैसा होना चाहिए विज्ञापन?

सीसीपीए द्वारा 2022 में जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, विज्ञापन को तभी गैर-भ्रामक और सत्य माना जाएगा, जब वह निम्नलिखित शर्तों को पूरा करे:

  • विज्ञापन में उपभोक्ताओं को पहले से प्राप्त अधिकारों को विज्ञापनदाता की ओर से विशेष फीचर के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए.
  • विज्ञापन में ऐसी कोई बात नहीं बताई जानी चाहिए जिसका कोई वैज्ञानिक आधार न हो.
  • विज्ञापन में दिखाए गए सामान या सेवाएं उपभोक्ताओं को उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा या उनके परिवार की सुरक्षा को लेकर गुमराह नहीं करती हैं.
  • यदि विज्ञापन में कोई दावा स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं किया गया है, तो विज्ञापन में ही इस जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए.
  • जो किसी अन्य क्षेत्राधिकार के कानून और विनियमों के प्रावधानों का अनुपालन करता है.

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भ्रामक विज्ञापन क्या है?

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(28) के तहत भ्रामक विज्ञापन को परिभाषित किया गया है. इसके अनुसार, किसी उत्पाद या सेवा का भ्रामक विज्ञापन वह होता है:

  • जिसमें उत्पाद या सेवा के बारे में गलत जानकारी दी गई हो.
  • जो झूठी गारंटी देता है या उत्पाद या सेवा की प्रकृति, पदार्थ, मात्रा या गुणवत्ता के बारे में उपभोक्ताओं को गुमराह करने की संभावना रखता है.
  • सीधे या परोक्ष रूप से कोई ऐसा विचार व्यक्त करना जो एक अनुचित व्यापारिक प्रथा है.
  • जो जानबूझकर महत्वपूर्ण जानकारी छिपाता है.

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विज्ञापन में उत्पाद का समर्थन करने वालों के लिए क्या नियम हैं?

सीसीपीए के 2022 दिशानिर्देशों के अनुसार, विज्ञापनों में शोध और विज्ञापनों का समर्थन करने वाले व्यक्तित्वों के नियमों को पुनः आयोजित किया गया है। धारा 13 (1) के तहत, विज्ञापनों में स्पष्टता का आवाहन किया गया है। इसके अनुसार, जो भी व्यक्ति, समूह या संगठन उत्पाद या सेवा के बारे में अपनी राय दे रहा है, उनकी राय वास्तविक होनी चाहिए और यह उनके अनुभव या उपयोग पर आधारित होनी चाहिए। साथ ही, यह विज्ञापन भ्रामक नहीं होना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, धारा 13(2) में यह भी उल्लेख किया गया है कि जहां किसी भारतीय पेशेवर को किसी विज्ञापन में किसी पेशे का समर्थन करने से मना किया गया है, वहीं विदेशी नागरिकों को भी ऐसे पेशे का समर्थन करने से बाध्य किया जाएगा।

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