जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं। जहां वो अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक गिर जाएं। जिसे इसके बावजूद सिर्फ संरक्षण दिया जाएं। कभी विरासत से, कभी पेशे से, कभी शक्ति के दम पर जिसकी रक्षा की जाएं। जहां वोट पाने की आड़ में सबकुछ सहन कर लिया जाएं।
तब समझ जाना चाहिए, राजनीति से ज्यादा खतरनाक और कुछ नहीं हो सकता है।
अब कर्नाटक का ही मामला ले लीजिए…जहां के एक सांसद प्रज्वल रेवन्ना पर अनगिनत महिलाओं के साथ यौन शोषण कर उनका वीडियों बना उन महिलाओं से ब्लैकमेल करने का आरोप है। जिसकी नजरों से कोई भी महिला सुरक्षित नहीं थी। न घर में काम करने वाली, और न नेताओंं की पत्नी।
जिस मामले के सामने आने से ठीक पहले प्रज्वल विदेश यात्रा पर निकल जाता है।
फिर सामने आती है राजनीति में लीपापोती। जहां पहले तो पार्टी से लेकर मीडिया तक मौन रहती है। किन्तु जब उन्हें ये मालूम चल जाता है कि अब कुछ नहीं हो सकता है। तब वो अपना उल्लू सीधा करने में लग जाते है। जहां पाखंड की हदें पार हो जाती है।
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हैरानी तब होती है जब किसी राजनेता के बयान पर महिला के साथ अहित बताने वाली पार्टी , उस वक्त मुंह में दही जाम लेती है। वो कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं करती है। ऐसे दिखाती है जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
वहीं इस घटना के आरोपी प्रज्वल विदेश से इस केस को लड़ने की बात कर ऐसे व्यवहार करता है जैसे उसने बड़ा काम किया हो।
अब सवाल ये उठता है कि क्या हमें अपनी बहन बेटियों की सुरक्षा के बारें में सोचना बंद कर देना चाहिए ? क्या आज सच में अब हमें किसी चीज कोई फर्क पड़ना बंद हो गया है?
जो देश का कोई पहला मामला नहीं है इसे पहले भी देश में दूसरी पार्टी के नेताओं की घिनौनी करतूतें सामने आयी है। इस सब के बावजूद इन मामलों पर राजनीति के अलावा और कुछ नहीं हुआ है। फिर चाहे देश की कोई भी पार्टी हो।
जो महिलाओं के साथ किये गए अत्याचारों के बावजूद, अपनी पार्टी में नेताओं का चेहरा नहीं बदलती है। फिर चाहे उन नेताओं पर जितने अपराधिक मामले दर्ज हो। एक रिपोर्ट की मानें, तो ऐसे नेताओं के जीतने के चांस ईमानदार नेताओं की तुलना में ज्यादा होते है। जिन पर अपराधिक मामले दर्ज होते है।
शायद यहीं कारण है कि पॉलिटिकल पार्टी इसका फायदा उठाना नहीं भूलती है। जहां वो रेपिस्ट, गैंगस्टर जैसे लोगों को अपनी पार्टी में केवल इस लिए बनाये रखती है। ताकि उन्हें जनता से वोट मिल सके।
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जिसके लिए महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचारों पर भी वो मौन रहती है। उनका उद्देश्य केवल अपनी पार्टी को जीतना होता है। फिर इससे क्या फर्क पड़ता है जब वो ये कहती है कि महिलाओं के साथ अपराध करने वाले को छोड़ नहीं जाएंगा। उन्हें कड़ी सजा दी जाएंगी।
जबकि सच्चाई तो ये होती है कि वो कार्यवाही केवल दूसरी पार्टी के नेताओं पर करते है। जो कहानी देश की हर पार्टी की है। पर इसके बावजूद जनता भी कम बेवकूफ नहीं है जो ऐसे अपराधियों को वोट दे अपना दायित्व पूरा करना मानती है। जो ऐसे अपराधियों को जीत दिलाने की कोशिश करती है। जो सबकुछ भूला भीड़ का हिस्सा बन जाती है।