मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो के मंदिर विश्वप्रसिद्ध हैं। पर खजुराहो में एक ऐसी जगह भी है जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। यहां मौजूद 400 साल पुराना किला किसी रहस्य से कम नहीं है।
गुलगंज किला को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं, जो की मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो के मंदिरों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया को दिखाता है। खजुराहो के मंदिरों की विश्वविख्यातता के बावजूद, गुलगंज किला एक ऐसी गुप्त गहराई है जो अधिकांश लोगों के लिए अज्ञात है।
यहाँ का 400 साल पुराना किला एक ऐतिहासिक धरोहर है, जिसमें रहस्य और प्रेतात्माओं की कहानियाँ छिपी हैं। स्थानीय लोग इसे रात्रि के समय गुलगंज की रानी की आत्मा की पहचान के रूप में मानते हैं, जो इस किले को रहस्यमय और उत्कृष्टता का प्रतीक बनाती हैं। इसी कारण से, गुलगंज का किला पर्यटकों को अपनी ऐतिहासिक महत्वपूर्णता और रहस्यमयी वातावरण के लिए आकर्षित करता है, जिसके फलस्वरूप दूर-दूर से भी पर्यटक इसे देखने आते हैं।
गुलगंज पहाड़ियों के शिखर पर मौजूद है किला
गुलगंज किला, जो कि 39 किलोमीटर दूर छतरपुर मुख्यालय से अनगौर के नज़दीक स्थित है, प्राचीन इतिहास और स्थापत्य की धारा को प्रतिबिंबित करता है। इसका अद्वितीय वास्तुकला और बुंदेली स्थापत्य का प्रतीक होने के साथ-साथ, इसकी रहस्यमयता भी लोगों को आकर्षित करती है। यह मध्य प्रदेश टूरिज्म बोर्ड द्वारा संरक्षित स्मारक है, जो बिजावर महराज द्वारा बनवाया गया था। यहां की शानदार वास्तुकला और बौद्धिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए पर्यटकों को आकर्षित किया जाता है, परन्तु स्थानीय लोग इसे रहस्यमय भी मानते हैं।
अंदर मौजूद हैं कई सुरंगें और भूमिगत कमरे
बिजावर से मात्र साढ़े 14 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस किले का निर्माण रक्षा शैली पर आधारित है। मुख्य किला दो भागों में विभाजित है, जिसमें दो द्वार भी शामिल हैं। इसके साथ ही, किले में अनेकों भूमिगत कमरे और गुप्त सुरंगें भी हैं, जो किले से बाहर निकलती हैं।
बुंदेला शासक ने कराया था निर्माण
गुलगंज किला लंबी दूरी से दिखाई देता है और इसका विकास बुंदेली वास्तुकला में बुंदेला शासकों के शासनकाल के दौरान हुआ था। इसका निर्माण 18वीं शताब्दी के आसपास शासक सावंत सिंह ने करवाया था। इसका नाम गुलगंज उनकी पत्नी गुल बाई के नाम से लिया गया है, जो इसके निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
आज भी आती है रानी की आत्मा
स्थानीय लोग बताते हैं कि बिजावर महाराज ने अपने खजाने को इसी किले में सुरक्षित छुपाया था। राजा सावंत सिंह ने अपनी पत्नी गुलबाई को यह गाँव और किला उपहार स्वरूप दे दिया था। बाद में गुलबाई के नाम पर ही इसका नाम गुलगंज पड़ा। ऐसा माना जाता है कि किले में 400 सालों से राजा का खजाना मौजूद है, जिस वजह से रानी गुलबाई की आत्मा इस किले और उस खजाने की रक्षा करती है।